एक माॅं को मार मिला क्या तुमको।
एक माॅं को मार मिला क्या तुमको, ये तो बतलाओ,
मानवता का धर्म है क्या, ज़रा ये तो समझाओ,
भूखी-प्यासी माॅं की ममता, एक नन्हीं जिंदगी,
मार के पाया क्या तूने, अब जग को समझाओ।
हम मानवता के किस दौर में, आ पहुंचे देखो,
मानवता पशुता से भी गंदी, हो गई अब देखो,
मानवता अब शेष नहीं, ना भूख मिटाना धर्म रहा,
कलयुग में मानवता-धर्म सब, दम तोड़ रहा देखो।
एक माॅं को मारके क्या तुझे, माॅं की याद ना आई,
तुम भी तो किसी जननी के, गर्भ में पले थे भाई,
तेरी निर्ममता, क्रूरता का, लो परिणाम अब देखो,
वो नन्हीं जान पूछ रही, कसूर क्या था मेरा, भाई !
प्रकृति अब मानव से इस, कुकर्म का बदला लेगी,
उस जननी का अभिशाप, ना चैन से जीने देगी,
तड़प तड़प कर जिएगा वो, मौत ना आएगी जल्दी,
अंत घड़ी में मौत से उसके, मौत भी शर्मिंदा होगी।
मानवता का मोल मिटाकर, ऐसा फल तूने खिला दिया,
पशु को एक क्षण में तूने, मानव से बेहतर बना दिया,
मोह, ममता, त्याग, न्याय, अब बारूद में है जल रहा,
मानव को जीते जी तुमने, है नर्क में अब पहुंचा दिया।
है नर्क में अब पहुंचा दिया, हाॅं नर्क में अब पहुंचा दिया।
रचनाकार- चंदन कुमार सिंह
मेरी यह कविता केरल में एक हथिनी जिसके पेट में एक नन्ही सी जान पल रही थी उसकी निर्मम हत्या पर उस निर्दोष प्राणी को समर्पित है अगर आपको यह कविता अच्छा लगे तो इसे शेयर अवश्य करें। धन्यवाद !
वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए link पर click करें।
एक माॅं को मार मिला क्या तुमको। https://youtu.be/qXJYNngGxEY
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