बड़ा ही गजब है, ये दुनियां का मेला ।
बड़ा ही गजब है, ये दुनिया का मेला,
ना कोई साथ है, ना कोई अकेला ।
नहीं है पता हमें जाना किधर है
फिर भी न जाने क्यों फ़िक्र ही फिक्र है
रिश्ते भरे हैं, सब तनहा मगर है
ना कोई साथी, ना कोई हमसफर है
गिनती के दिन हैं अनगिनत झमेला ।
बड़ा ही गजब है, ये दुनिया का मेला,
ना कोई साथ है, ना कोई अकेला ।
बड़ा ही गजब है, ये दुनिया का मेला।
हरी-भरी बस्ती है मझधार कश्ती है
दुख में डूबा यहां हर एक हस्ती है,
आज नहीं बस कल की फिकर है,
ना कुछ हुनर है ना पारखी नजर है,
सुख के साथी सब दुख में अकेला ।
बड़ा ही गजब है, ये दुनिया का मेला,
ना कोई साथ है, ना कोई अकेला ।
बड़ा ही गजब है, ये दुनिया का मेला।
जीत में जीत नहीं, हार में प्रहार,
इधर, उधर, जिधर, तीधर, बस है तकरार,
ममता का मोल नहीं, टेढ़ी है चाल,
दोष देखें सबकी, ना देखे अपनी हाल,
नाम, काम, सोहरत, है स्वार्थ का रेला
यहां ना गुरु कोई ना कोई चेला ।
बड़ा ही गजब है, ये दुनिया का मेला,
ना कोई साथ है, ना कोई अकेला ।
बड़ा ही गजब है, ये दुनिया का मेला।
रचनाकार - चन्दन कुमार सिंह
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