अपनों ने ही घर को लूटा |
देखो ! (हाय रे !) किस्मत ये कैसा फुटा
अपनों ने ही घर को लूटा
नए-नए सपने बुने थे
लोग कितने नेक चुने थे
जिसको था खुशहाली लाना
खेतों में हरियाली लाना
घर-आँगन वो जला रहा था
दुश्मन सबको बना रहा था
देखो ! (हाय रे !) सपना ये कैसा टूटा
अपनों ने ही घर को लूटा
जिसको समझ हम नेक रहे थे
सब के सब नाकारे निकले थे
जिसको था रखवाली करना
जन-जन में खुशियाँ था भरना
लूटेरों के वो साथ खड़ा था
सोने की चिड़ियाँ बाँट रहा था
देखो ! (हाय रे !) उम्मीद ये कैसा टूटा
अपनों ने ही घर को लूटा
क्या वीरप्पन ? क्या कलमारी ?
क्या राजा और क्या दरबारी ?
सबने शपथ रक्षा का खाया
पर जन-धन का लूट मचाया
जन, निर्धन लाचार खड़ा है
जीते जी सौ बार मरा है
देखो ! (हाय रे !) शपथ ये कैसा टूटा
अपनों ने ही घर को लूटा
अँधेरे में होती दिवाली
खूनों से होती रोज होली
द्रोपदी लुटती रोज यहाँ पे
दुशासन खड़ा है पग-पग पे
युधिष्ठिर-अर्जुन सब लाचार खड़ा है
पितामह भीष्म सर-सैया पर पड़ा है
देखो ! (हाय रे !) कहर ये कैसा टूटा
अपनों ने ही घर को लूटा
रक्षक-भक्षक बन बैठा है
खादी रेशम के संग बैठा है
सब अपनी रोटी सेक रहे हैं
आरोप एक-दूजे पर फेक रहे हैं
कानून धृतराष्ट्र बना बैठा है
खुशहाली भ्रष्टों के भेंट चढ़ा है
देखो ! (हाय रे !) भरोसा ये कैसा टूटा
अपनों ने ही घर को लूटा
सबने लूट को धंधा बना लिया है
जाने किसने छुट दिया है
ना मानव, ना धर्म बचा है
फैशन ने चिर-हरण किया है
कैसी मिली आजादी हमको
लुट रहे जहाँ अपने सबको
देखो ! (हाय रे !) भाग्य ये कैसा फुटा
अपनों ने ही घर को लूटा
जिसने अपने जान गवाई
भारत माँ की शान बढाई
वो महत्वहीन पड़ा बैठा है
डाकू शासक बना बैठा है
ना बची वो संसद, ना वो शांति
ना राम बचा, ना बचा है गाँधी
देखो ! (हाय रे !) किस्मत ये कैसा फुटा
अपनों ने ही घर को लूटा
By Chandan Kumar Singh
चन्दन कुमार सिंह
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