Hindi translation of 'GILLU' by Mahadevi Verma

GILLU by Mahadevi Verma का हिंदी अनुवाद।

Mahadevi Verma के संक्षिप्त परिचय का हिंदी अनुवाद।
महादेवी वर्मा (1907-1987) हिंदी मैं काव्य (कविता) के छायावादी स्कूल की एक प्रमुख कवयित्री थी। वह एक प्रसिद्ध कहानीकार और प्रसिद्ध हिंदी साप्ताहिक "चाँद" की संपादक भी थी। उनके कुछ महत्वपूर्ण कार्यों में दीप शिखा; यम, निहार (कविता) श्रृंखला की कदियान, मेरा परिवार शामिल है।  वह मंगला प्रसाद पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ-साथ पद्म भूषण की प्राप्तकर्ता थी। उन्हें साहित्य अकादमी का सदस्य मनोनीत किया गया था।

GILLU पाठ का हिंदी अनुवाद।

अप्रत्याशित रूप से, एक सुबह, जब मैंने कमरे से बरामदे में प्रवेश किया, तो मैंने देखा, दो कौवे खेल की तरह फूलों के गमलों पर अपनी चोंच मार रही थी, मोनो लुका-छिपी के खेल में लगे हों।

अचानक, कौवे के पौराणिक कथा का मेरे अंदर का परिश्रमी आलोचक मेरे ध्यान द्वारा बाधित होता है जो एक छोटे से जीव पर पड़ता है जो गमले और दीवार के बीच बने जगह में छिपा पड़ा था। करीब जाने पर, मैंने देखा कि वह एक छोटा सा गिलहरी का बच्चा था, जो दुर्घटना वस गलती से एक घोंसले से नीचे गिर गया था और अब कौवे द्वारा उसे एक आसान शिकार समझा जा रहा था। कौवे के जोड़े द्वारा किए गए हमले से प्राप्त दो घाव इस छोटी सी जी के लिए पर्याप्त था और अब वह गमले से चिपका स्थिर (बेसुध) पड़ा था।

सभी ने टिप्पणी की कि वह कौवे द्वारा बुरी तरीके से हमला किए जाने के बाद जीवित नहीं बचेगा, इसलिए इसे अकेला छोड़ दो।  लेकिन, मेरे मन ने उनके विचारों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, और इसलिए, मैंने सावधानी से उसे उठा लिया और उसे अपने कमरे में ले आया, और उसके घावों से रुई से खून पोंछने के बाद पेनिसिलिन मरहम लगाया।

मैंने किसी तरह एक पतली रूई की बत्ती बनाकर दूध में डूबा कर उसके मुंह में डालकर उसे दूध पिलाने की कोशिश की। लेकिन वह अपना मुंह नहीं खोल पा रहा था और दूध की बूंदें दोनों तरफ से नीचे गिर गई।  कई घंटों के की देखभाल के बाद ही मैं उसके मुंह में एक बूंद पानी डाल सकी।  लेकिन, तीसरे दिन वह काफी बेहतर हो गया और विश्वस्त किया कि वह अपने दो छोटे-छोटे पंजों का उपयोग कर मेरी अंगुली पकड़ लेगी और अपनी नीली, कांच की मोतियों जैसी आंखों से चारों ओर टकटकी लगाकर देखेगी। और तीन-चार महीनों में, उसने अपनी चिकनी फर (बाल या रूआं), घनी पूंछ और शरारती, चमकीली ऑंखों से सभी को चकित कर दिया।


उसके बाद जातिवाचक संज्ञा से व्यक्तिवाचक संज्ञा में परिवर्तन हुआ और हम लोग उसे गिल्लू कहने लगे। मैंने तार की मदद से खिड़की पर सूती कपड़े से मेढे हुए एक हल्की फुल की टुकड़ी को लटका दिया। दो साल के लिए, यह गिल्लू का निवास था।  सभी उसकी हरकतों और बुद्धि पर खुशीपूर्वक आश्चर्यचकित थे।

जब मैं लिखने बैठती, तो वह मेरे ध्यान को आकर्षित करने के लिए एक तीव्र इच्छाशक्ति के साथ ठहरी रहती, कि वह ऐसा करने का एक उत्तम तरीका निकाल ली थी। वह तेजी से मेरे पैरों तक आती, तेजी से पर्दे के ऊपर चढ़ जाती और उससे खतरनाक रफ्तार से नीचे उतरती थी। यह क्रम उस समय तक जारी रहता था जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए उठ जाती थी। कुछ अवसरों पर, मैं गिल्लू को पकड़ लिया करती थी और उसके छोटे शरीर को एक लंबे लिफाफे में रख देती थी। कभी-कभी, वह टेबल पर दीवार के सहारे अजीब स्थिति में घंटों खड़ी रहती थी और मेरी गतिविधियों को अपनी चमकीली आंखों से देखती रहती थी।

भूखे होने पर वह मुझे चिक-चिक की ध्वनि निकालकर बता देती थी। और कुछ बिस्कुट या काजू खाने के बाद, मैं उसकी चिक चिक की ध्वनि पर आश्चर्य करता था, जो उसके और अन्य गिलहरियों के बीच का आदान-प्रदान होता था, जो प्रायः तार से बंधे हुए खिड़की पर दिख जाया करती थी। गिल्लू का खिड़की के नजदीक बैठना और प्यार से बाहर की दुनिया को झांकते देखना मुझे एहसास कराता था की उसे आजाद कर देना आवश्यक था।

कुछ तारों को हटाकर, मैंने तार के पिंजरे के एक कोने में एक छोटा सा रास्ता बना दिया, और इस रास्ते से बाहर जा पाने पर आजाद होकर गिल्लू बहुत उत्साहित होता था।


मेरे महत्वपूर्ण कागजात और पत्रों के कारण, मेरा कमरा मेरी अनुपस्थिति में बंद रहा करता था। जिस पल कॉलेज से मेरी वापसी पर कमरा खोला जाता था और मैं कदम अंदर रखती थी, गिल्लू दौड़कर मेरे पास आती थी और मेरे सिर से पैर तक ऊपर और नीचे चढ़ती उतरती थी। तब से, यह एक नियमित अभ्यास बन गया था। मेरे कमरे से निकलने पर, गिल्लू भी खिड़की के तार-जाल मैं बने रास्ते से निकल जाता था। वह पूरा दिन पेड़ की शाखाओं पर ऊपर-नीचे उछल-कूद करता हुआ अपनी भाग्य के साथ बिताता था।

मेरे पास कई पालतू जानवर और पक्षी हैं और वे सभी मुझे बहुत प्यारे हैं। लेकिन मुझे याद नहीं है कि उनमें से कोई भी मेरी प्लेट से खाने की हिम्मत रखता है।

गिल्लू एक अपवाद था। जिस क्षण मैं भोजन करने वाले कक्ष मैं पहुंचती थी, वह आंगन की दीवार और बरामदा को पार कर खिड़की से प्रगट होकर मेरे टेबल तक पहुंच जाती थी और मेरे प्लेट में बैठना चाहती थी। बड़ी मुश्किल से मैंने उसे अपनी प्लेट के पास बैठना सिखाया। उनका पसंदीदा भोजन जहां वे चावल के प्रत्येक दाने को निपुणता से खाती थी। उनका पसंदीदा भोजन काजू था और जब कई दिनों तक उपलब्ध नहीं होता था, तो वह अन्य खाद्य पदार्थों को नकार देती थी और उसे झूले से नीचे फेंक दिया करती थी।

उस समय अंतराल में, एक मोटर कार दुर्घटना में घायल होने के कारण, मुझे कुछ दिन अस्पताल में बिताने पड़े।  उन दिनों, जब कभी भी मेरा कमरा खुलता था, गिल्लू झट से अपने झूले से नीचे उतर जाता था, लेकिन किसी और को देखने पर, वह उसी तीव्रता के साथ अपने घोसले में बैठने के लिए वापस लौट आता था। हर कोई उसे काजू दिया करता था, लेकिन मेरे अस्पताल से वापस लौटने पर जब मैंने उसके झूले को साफ किया, तो मैंने पाया कि वह काजू से भरा हुआ था, जो यह दिखाता है कि वह उन दिनों अपना पसंदीदा भोजन कितना कम खा रहा था। मेरे अस्वस्थता के दौरान, वह मेरे सिर के पास तकिए पर बैठा करता था और धीरे से मेरे माथे और बालों को दबाता था, और उसका दूर जाना नर्स या सेवक के दूर जाने जैसा था।

जब मैं गर्मी के दोपहरों के दौरान काम किया करती थी तो गिल्लू बाहर जाने या अपने झूले में बैठने से बचती थी (अर्थात दूर रहती थी)। उसने खुद को मेरे करीब रखने तथा ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से निपटने का एक बिल्कुल नया तरीका खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाया करता था और इस तरह वह मेरे करीब होने के साथ-साथ ठंडा भी दोनों रहता था।

गिलहरियों का जीवनकाल मुश्किल से दो साल का होता है;  इस तरह, गिल्लू का जीवन काल आखिरकार एक अंत तक पहुंच गया। पूरे दिन, वह न तो खाया और न ही बाहर कदम रखा। रात में, दूर जाने की पीड़ा होने के बावजूद भी, वह झूले से मेरे बिस्तर तक आया और अपने ठंडे पंजों से उसी उंगली को पकड़ा, जो उसने अपने बचपन में मृत्यु जैसी अवस्था में पकड़ा था।

पंजे इतने ठंडे हो रहे थे कि मैंने हीटर चला दिया और उसे कुछ गर्मी देने की कोशिश की। लेकिन, जैसे ही सुबह की पहली किरण ने उसे छुआ, वह विदा हो गया।

उसके झूले को हुक से उतार दिया गया और तार-जाली वाली खिड़की में बनाया गया रास्ता बंद कर दिया गया।

गिल्लू को सोनजुही लता के नीचे आनंत विश्राम के लिए दो कारणों से गाड़ा गया, क्योंकि वह इस लता को सबसे अधिक पसंद करता था और संतुष्टि के लिए भी। मेरा ऐसा विश्वास है कि किसी वसंत में मैं उसे एक छोटे से पीले जूही फूल के रूप में फूलते-खिलते पाऊंगी।

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