प्रेम की गली।

प्रेम की गली।

प्रेम की गली में कभी हम भी गए।
तोड़ बंधने सब तब हम खो गए,
तूफ़ा कहती रही रुको तुम रुको,
प्रेम बस छल है मत तुम झुको,
हम सुनते रहे पर बढ़ते रहे,
एक ऐसे भंवर में जा हम फसे।

वो गलियां बहुत ही रंगीन सी लगी,
काली फूल थी बो भी हसीन सी लगी,
अजब सा नशा था एक पागलपन था,
मेरे काबू में नहीं मेरा चितवन था,
फिर टूटा वो स्वप्न हम देखते रहे,
कुछ ऐसे भवर में जा हम फंसे।

तूफ़ा ने पूछा फिर रुके क्यों नहीं,
भंवर में जाने से चुके क्यों नहीं,
कहा चाहा बहुत मगर हो ना सका,
जज्बात मैं अपने खो ना सका,
फिर रोते रहे वो रुलाते रहे,
कुछ ऐसे भवर में जा हम फंसे।

दिल ने पूछा मुझे अब होगा क्या,
वो गई तोड़कर मेरी गलती थी क्या,
समझाया दिल को दिल समझ गया,
झूठे शब्दों का मतलब भी गढ़ गया,
फिर हम हंसते रहे गाते रहे,
जीवन को हर भंवर से बचाते रहे।

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