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क्या था मेरा कसूर !

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एक तीर लगा  दिल पे कुछ ऐसा जख्म बना नासूर ना जानू  क्या था मेरा कसूर।-2 क्या अपना और क्या पराया सबने रची बस झूठी माया दिल से कोई अपना ना था मेरा झूठा था गुरूर ना जानू  क्या था मेरा कसूर।-2 कौन बताए क्यों किस्मत रूठा किसे बताऊं दिल कितना टूटा पाने का ना आश बचा है पर जीने को मजबूर ना जानू  क्या था मेरा कसूर।-2 सारे अरमां टूट के बिखरे सपने हुए सब चिथरे -चिथरे खुशियां मनाने लोग जुटे थे मैं टूटता रहा जरूर ना जानू  क्या था मेरा कसूर।-2 पल-पल कितना दर्द सहूं मैं हर पल कितना और मरुं मैं जाने क्या क्या और लिखा है किस्मत में हजूर ना जानू  क्या था मेरा कसूर।-2 By Chandan Kumar Singh

शुभ रक्षाबंधन

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तेरी दुआओं में मेरा भी हक हो, प्रेम भरा ये रिश्ता सदा बेशक हो, माथे पे फेर हाथ प्रेम-आशीष लुटाना, गर दूर भी रहना तो भी साथ निभाना, कच्चे धागे का ये बंधन टूटे ना कभी, साथ ये तेरा मेरा छूटे ना कभी, सुनी रहे ना कभी, मेरी ये कलाई, तू मेरी बहन सोनी, चंदन तेरा भाई, बड़ी हो तुम सदा बड़कपन दिखाना, छोटी-छोटी बातों को दिल से ना लगाना, मेरी जो बातें कोई पीड़ा दे तुमको, संकोच ना करना कभी मुझे तुम बताना, रूठू जो कभी मैं तो आ के मनाना, बहन हो तो बहन का हक तुम जताना, जब-जब पीड़ाऔं मैं, मुझे तुम पाना, थोड़ा बांट लेना आके, गले से लगाना, थोड़ा जो बचपना मुझमें है बाकी, उसको जिंदा रखना बांध के राखी, सुनी रहे ना कभी मेरी ये कलाई, तू मेरी बहन सोनी, चंदन तेरा भाई, तेरे प्यार पे थोड़ा सा, मेरा भी हक हो, प्रेम भरा ये रिश्ता, सदा बेशक हो। प्रेम भरा ये रिश्ता, सदा बेशक हो। By Chandan Kumar Singh Dedicated to Soni Singh

एक माॅं को मार मिला क्या तुमको।

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एक माॅं को मार मिला क्या तुमको, ये तो बतलाओ, मानवता का धर्म है क्या, ज़रा ये तो समझाओ, भूखी-प्यासी माॅं की ममता, एक नन्हीं जिंदगी, मार के पाया क्या तूने, अब जग को समझाओ। हम मानवता के किस दौर में, आ पहुंचे देखो, मानवता पशुता से भी गंदी, हो गई अब देखो, मानवता अब शेष नहीं, ना भूख मिटाना धर्म रहा, कलयुग में मानवता-धर्म सब, दम तोड़ रहा देखो। एक माॅं को मारके क्या तुझे, माॅं की याद ना आई, तुम भी तो किसी जननी के, गर्भ में पले थे भाई, तेरी निर्ममता, क्रूरता का, लो परिणाम अब देखो, वो नन्हीं जान पूछ रही, कसूर क्या था मेरा, भाई ! प्रकृति अब मानव से इस, कुकर्म का बदला लेगी, उस जननी का अभिशाप, ना चैन से जीने देगी, तड़प तड़प कर जिएगा वो, मौत ना आएगी जल्दी, अंत घड़ी में मौत से उसके, मौत भी शर्मिंदा होगी। मानवता का मोल मिटाकर, ऐसा फल तूने खिला दिया, पशु को एक क्षण में तूने, मानव से बेहतर बना दिया, मोह, ममता, त्याग, न्याय, अब बारूद में है जल रहा, मानव को जीते जी तुमने, है नर्क में अब पहुंचा दिया। है नर्क में अब पहुंचा दिया, हाॅं नर्क में अब पहुंचा दिया। रचनाकार- चंदन कुमार सिंह मेरी यह कवित...

एक गीत सुनाने आया हूॅं, कुछ बात पुरानी लाया हूॅं।

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एक गीत सुनाने आ‌‌या हूं, कुछ बात पुरानी लाया हूं । मां की ममता जो भूल गए, मैं याद कराने आया हूं । एक गीत सुनाने आया हूं, कुछ बात पुरानी लाया हूं । छोटा सा था घर एक अपना, था छोटा सा संसार, प्यार लुटाते थे जहां सभी, थी खुशियों की भरमार, जब हम रुठते थे कभी तो, सब मनाते हमें हजार, छोड़ आए हम वो गलियां, अब हो के समझदार, अ ढूंढते रहते हैं जीवन भर, वो अपनापन वो प्यार, नहीं खरीद सकते जिसे हम, चाहे पैसे हो भरमार, छूटे रिश्तों का हर मोल मैं, बस याद कराने आया हूं, एक गीत सुनाने आया हूं, कुछ बात पुरानी लाया हूं । जाने कितनी उंगलियां, हम पकड़ पकड़ कर खड़े हुए, उनके हिस्से की खा खा कर, आज हम इतने बड़े हुए, डांटते पीटते थे गुस्से में, पर प्यार बहुत हमें करते थे, हमरी खुशीयों के खातिर वे, आपस में अक्सर लड़ते थे, अपने स्वार्थ में बांट रहे हम, खुशियों की फुलवारी को,  ममता-स्नेहा, प्यार-मोहब्बत, बच्चों की किलकारी को, बचपन की वो बात पुरानी, बस याद दिलाने आया हूं, एक गीत सुनाने आया हूं, कुछ बात पुरानी लाया हूं । कंधे पर हम बैठ चाचा के , मेला जाया करते थे, लड्डू-जलेबी, खाजा-टिकरी, पेड़े खाया...

दिल ने एक दिन दिल से पूछा।

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दिल ने एक दिन दिल से पूछा, दिल ये बता दिल में क्या है ? दिल ने दिल से दिल को बोला। दिल ये बचपन, यौवन का दर्पण, यादें हैं अंकित और क्या है ? दिल ने फिर से दिल से पूछा, बता यादों में अंकित क्या-क्या है ? दिल ने फिर से दिल को बोला। दोस्त हैं सारे और यादें उनकी, दोस्ती बिना जीवन क्या है ? फिर दिल भी दिल की यादों में खोया, भारत की बातों, अंदाजों मैं खोया, मुकेश के मुख, मुस्कानों को पाकर, एक मीठी सुनहरी यादों में खोया। अब यादों से दिल की आंखें नम थी, जैसे देखा खुशियों का एक दर्पण था, दिल बोला हकीकत में फिर से आकर, प्यारा, प्यारा वो प्यारा क्या दिन था !  By CKS

Hindi translation of 'Dharam Juddha' by Arjun Dev Charan

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DHARAM JUDDHA by Arjun Dev Charan का हिंदी अनुवाद। Arjun Dev Charan के संक्षिप्त परिचय का हिंदी अनुवाद। ARJUN DEV CHARAN, पेशे से एक शिक्षक, मूलतः कवि हैं।  उनके नाटक उनकी कविता के विस्तार की तरह दिखाई देते हैं।  उनके अंदर का कवि अपनी छोटी, कुरकुरी और सटीक पंक्तियों और कोरस (समुह गान) के गीत को अपने नाटक के माध्यम से दिखाता है। सत्तर (70) के दशक के अंत में प्रकाशित राजस्थानी नाटकों की उनकी पहली पुस्तक को राजस्थानी साहित्यिक समुहों में उदासीनता से देखा गया। उस समय तक राजस्थानी में नाटक का मतलब या तो सामाजिक मुद्दों, जैसे विधवा-पुनर्विवाह, दहेज प्रथा आदि पर भटकावपूर्ण एकांकी था या फिर ऐतिहासिक और पौराणिक विषयों पर आधारित लोक नाटक होता था;  एक समकालीन विषय पर एक पूरी लंबाई का नाटक उस समय अनुमान से परे था। हालांकि, अर्जुन का इस दृश्य (क्षेत्र) मैं आगमन न केवल नाटकीय साहित्य की दृष्टि से, बल्कि आधुनिक नाटक मंच के दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । अर्जुन देव के नाटकों में " दो नाटक आज रा, गुवारी और संकारियो, बोल म्हारी मचली किट्टोक पानी,  धर्म-युद्ध और मुगती...

Hindi translation of 'GILLU' by Mahadevi Verma

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GILLU by Mahadevi Verma का हिंदी अनुवाद। Mahadevi Verma के संक्षिप्त परिचय का हिंदी अनुवाद। महादेवी वर्मा (1907-1987) हिंदी मैं काव्य (कविता) के छायावादी स्कूल की एक प्रमुख कवयित्री थी। वह एक प्रसिद्ध कहानीकार और प्रसिद्ध हिंदी साप्ताहिक "चाँद" की संपादक भी थी। उनके कुछ महत्वपूर्ण कार्यों में  दीप शिखा; यम, निहार (कविता) श्रृंखला की कदियान, मेरा परिवार  शामिल है।  वह मंगला प्रसाद पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ-साथ पद्म भूषण की प्राप्तकर्ता थी। उन्हें साहित्य अकादमी का सदस्य मनोनीत किया गया था। GILLU पाठ का हिंदी अनुवाद। अप्रत्याशित रूप से, एक सुबह, जब मैंने कमरे से बरामदे में प्रवेश किया, तो मैंने देखा, दो कौवे खेल की तरह फूलों के गमलों पर अपनी चोंच मार रही थी, मोनो लुका-छिपी के खेल में लगे हों। अचानक, कौवे के पौराणिक कथा का मेरे अंदर का परिश्रमी आलोचक मेरे ध्यान द्वारा बाधित होता है जो एक छोटे से जीव पर पड़ता है जो गमले और दीवार के बीच बने जगह में छिपा पड़ा था। करीब जाने पर, मैंने देखा कि वह एक छोटा सा गिलहरी का बच्चा था, जो दुर्घटना वस गल...